जब दिन गर्दिश के थे, ना कोई पूछने वाला था,
उस वक्त मुझे बाबा, तूने ही संभाला था…..
(तर्ज – बचपन की मोहब्बत को)
दाने दाने के लिए, मैं गुहार लगाता था,
कोई साथ तो दो मेरा, मैं पुकार लगाता था,
भूखे ही सोते थे, ना पास निवाला था,
उस वक्त मुझे बाबा, तूने ही संभाला था…..
मैं भूला नहीं कुछ भी, सब कुछ है याद मुझे,
अपनों ने छोड़ा था, करके बर्बाद मुझे,
मेरी लाज को जब जग ने, सरे आम उछाला था,
उस वक्त मुझे बाबा, तूने ही संभाला था…..
मेरी मजबूरी का, सब लाभ उठाते थे,
मुझे अपने इशारों पे, ये खूब नचाते थे,
सबने मुझसे अपना, बस काम निकाला था,
उस वक्त मुझे बाबा, तूने ही संभाला था…..
जिन्हें सोचता था मैं खरा, वह असल में खोटे थे,
झूठी हमदर्दी के, चेहरे पर मुखोटे थे,
हर अपने ने ‘माधव’, मुश्किल में डाला था,
उस वक्त मुझे बाबा, तूने ही संभाला था…..
जब दिन गर्दिश के थे, ना कोई पूछने वाला था,
उस वक्त मुझे बाबा, तूने ही संभाला था…..
लिरिक्स – अभिषेक शर्मा जी (माधव)