थारो भरदे यो भण्डार, एकबर आजा खाटू धाम,
कोई खाली न जावे अंके द्वार से ।। टेर।।
तर्ज – थाने काजलियो बणालयूं ।
जो प्रेम से अंन्ने रिझाव, बेर शबरी के जइंया खिलावे,
ऊंकी थामें यो पतवार, करदे भवसागर से पार,
राखे पलकों पे उन्ने बिठाइके ।। १ ।।
अंको दर पे जो आँसू बहावे है, सच्चे मन से अरदास लगावै है,
उणकी सुनता ये पुकार, दौड़ा आये नंगे पांव,
नैया करदे किनारे मझधार से ।। २ ।।
जब मोर छड़ी लहरावे है, सारे भक्तां का कष्ट मिटावे है,
करता इनका जो गुणगान, हरदम रखता उनका ध्यान,
सारे जग में बढ़ावे उनका मान रे ।। ३ ।।