शरण मोहे रखवो अपनी श्याम,
दीनबन्धु दीनन हितकारी, अखिल लोक विश्राम ।। टेर ।।
तर्ज – फकीरी अलबेला ।
मैं मतिमंद मूढ़ और कामी, हूँ व्यसनों के वश में,
काम, क्रोध, मद मोह, ईर्ष्या, फंसा हूँ मैं भवरस में,
कृपा करो करुणा वरुणालय, आप हो पूरण काम ।। शरण ।।
जीव ब्रह्म के नाते स्वामी, अंस आपका हूँ मैं,
और नहीं साथी कोई ऐसा, जिसको जाय कहूँ मैं,
जन मन भावन, पतित उबारण, हारे के बलराम ।। शरण ।।
निजजन जान नाथ अपना कर, हमको गले लगालो,
अंगुली से नख अलग न होता, जान के और न टालो,
‘सांवर’ दास शरण में तेरी, जपे सदा तेरा नाम ।। शरण ।।
लिरिक्स – सांवर जी