दादी जी के मंदरिये में मोर नाचे,
घन-घन घंटा शंख नगाड़ा, दर पे नोबत बाजे ।। टेर ।।
तर्ज – तेरह पेड़यां ऊपर म्हारे ।
दादुर मोर पपीहो बोले, मंदरिये के मायं,
देख देख भगतां की श्रद्धा, दादीजी मुस्काय,
बैठयो सोचे कांई चले रे, भगतां के सागे ।। १ ।।
घन-घन घंटा….
झुंझनू की सेठाणी है, दुनिया में मशहुर,
एकी जो भी जावे ओजूं, जावेलो जरूर,
वो तो दादी जी की यादड़ली में, रात्यु जागे ।। २ ।।
घन-घन घंटा….
‘हर्ष’ बिराजे सत्ती मण्ड मं, सतियाँ की सिरमोर,
दादी जी के हाथा मांही, निज भगतां की डोर,
मेरो आयो है बुलावो मन्ने, अइयां लागे ।।३।।
घन-घन घंटा….
लिरिक्स – विनोद अग्रवाल (हर्ष) जी