है दीनबन्धु शरण हूँ तुम्हारी, खबर लो हमारी।।
ये माना के गलती हम से हुई है भुलाया है तुमको,
अपने पराये का भेद ना जाना माफ़ करो हमको,
आखिर तो हमने याद किया है तुम को मुरारी
है दीनबन्धु शरण हूँ तुम्हारी, खबर लो हमारी।।
दीनों के नाथ तुमने दुखियाँ कोई हो गले से लगाया,
गोद में बिठा के उसके आंसुओ को पोछा थोड़ा थप थपाया,
करूणा के सिंधु इधर भी नजर कर मैं कब का दुखारी,
है दीनबन्धु शरण हूँ तुम्हारी, खबर लो हमारी।।
हमने सुना है कान्हा तेरी खुदाई का जोड़ नहीं है,
जाये कहा हम कान्हा तेरे सिवा कोइ और नहीं है,
दो बूंद सागर से हमको भी देदो हो तृप्ती हमारी,
है दीनबन्धु शरण हूँ तुम्हारी, खबर लो हमारी।।
लिरिक्स – सज्जन जी सिंघानिया