श्यामधणी है सेठ म्हारो, मोरछड़ी सेठाणी,
यो ही है नरसी रो सेठ, इकबर खाटू जाकर देख,
हूण्डी रोज ही सिकारे जी ।। टेर ।।
तर्ज – लाडू भा खाया म्हे तो ।
भक्तां री लाज कदे जाण नहीं देव,
दुनियाँ के आगे सर झुकाण नहीं देव,
बिन माग्यां ही देव भेज, इकबर खाटू जाकर देख ।। हुण्डी…।।
मोरछड़ी के झाड़ की तो चर्चा च्यारूं और है,
अं कलयुग क मांय म्हारी सेठाणी को जोर है,
झाड़े लगवाले बस एक, इकबर खाटू जाकर देख ।। हुण्डी…।।
लाखां ही भगत रोज, हुण्डी लिख लिख भेज,
सबकी हुण्डी बांचे और दाम गिण गिण भेज,
राखे हर भक्तां री टेक, इकबर खाटू जाकर देख ।। हुण्डी…।।
‘बनवारी’ इब देखले तूं करक भरोसो,
सांची है सेठाणी और सेठ चोखो चोखो,
बदले यो किस्मत का लेख, इकबर खाटू जाकर देख ।। हुंडी…।।
लिरिक्स – जयशंकर चौधरी जी