हरि जी मोहे चाकर राखो जी ।
चाकर रहसूं बाग लगासूं, नित उठ दर्शन पासूं,
वृन्दावन की कुंज गलिन में, हरी की लीला गास्यूँ ।
हरि जी मोहे चाकर राखो जी ।।
चाकरी में दर्शन पाऊं, सुमिरन पाऊं खरची,
भाव भगति जागीरी पाऊं, तीनों बातां सरसी ।
हरि जी मोहे चाकर राखो जी ।।
मोर मुकुट पीतांबर सोहे, गल बैजंती माला,
वृंदावन में धेनु चरावे, मोहन मुरली वाला ।
हरि जी मोहे चाकर राखो जी ।।
हरे-हरे नित बाग लगाऊं, बिच-बिच रखूं क्यारी,
सांवरिया को दर्शन पाऊं, पहरे कुसुम्भी सारी ।
हरि जी म्हाने चाकर राखो जी ।।
जोगी आया जोग करण को, तप करने संन्यासी,
हरि भजन को साधु आया, वृंदावन को वासी ।
हरि जी मोहे चाकर राखो जी ।।
मीरा के प्रभु गहिर गंभीरा, सदा रहो जो धीरा,
आधी रात प्रभु दर्शन दीन्हे, प्रेम नदी के तीरा ।
हरि जी म्हाने चाकर राखो जी ।।
लिरिक्स – मीराबाई जी