प्रेम जता कर कठे गया था श्याम,
म्है इत् उत् ढूँढ़ा, साँवरा जी दिन रात ।। टेर ।।
तर्ज – घूघर्री ।
हेत बढ़ाकर दूर गया क्यूँ श्याम,
म्हारो हिवड़ो कलपे, साँवरा जी दिन रात ।। १ ।।
झलक दिखा कर ल्हु छिप बैठ्या श्याम,
म्हारी निजरां तरसे, साँवरा जी दिन रात ।। २ ।।
थे कलजड़े रा टुकड़ा म्हारा श्याम,
थारी यादां आवे सांवरा जी दिन रात ।। ३ ।।
शीश झुका कर अरज लगावाँ श्याम,
‘रवि’ टेर लगावे, सांवरा जी दिन रात ।। ४ ।।