उंगली को पकड़ मेरी, चलना मुझे सिखलादो,
भटके हुए राही है, मंजिल का पता देदो ।। टेर ।।
तर्ज – होंठो से छू लो तुम ।
मंजिल न मिली मुझको, दर दर मैं यूंही भटका,
कोशिश में कमी ना थी, पर काम सदा अटका,
अब हार गया हूँ मैं, रस्ता मुझे दिखलादो ।। १ ।।
हारे का सहारा हो, सबने मुझे बतलाया,
मैं हूँ सबसे हारा, सारे जग का ठुकराया,
अब डूबने से पहले, तिनका मुझे पकड़ादो ।। २ ।।
बस आसरा तेरा है, विश्वास तुम्हीं कान्हा,
मुश्किल है अब सहना, जो पूरे न हो अरमां,
पतवार पकड़ करके, भवसागर तरवादो ।। ३ ।।