मैं सेवक तेरी चौखट का,
काम ये मेरा, क्यूँ अटका ॥
(तर्ज : मैं तुलसी तेरे आँगन की )
आश तेरी विश्वास है तेरा,
तेरे ही भरोसे दास है तेरा,
दर दर प्रभु ये, ना भटका,
॥ मैं सेवक ॥
क्या मैं बताऊँ क्या मैं छुपाऊँ,
दिल की हकीकत क्या मैं सुनाऊँ,
तुझको पता है घट-घट का,
॥ मैं सेवक ॥
नजर महर की जो हो जाये,
मेरी सब व्याधा मिट जाये,
छँट जाये बादल संकट का,
॥ मैं सेवक ॥
तुझसे ही प्रभु आश लगाई,
‘बिन्नू’ की करलो सुनवाई,
में तो प्रभु मन का खटका,
॥ मैं सेवक ॥
लिरिक्स – बिन्नू जी