प्रबल प्रेम के पाले पड़कर, प्रभु का नियम बदलते देखा,
अपना मान टले टल जाए, भक्त का मान ना टलते देखा ।।
जिनकी केवल कृपा दृष्टी से, सकल विश्व को पलते देखा,
उनको गोकुल में माखन पर, सौ सौ बार मचलते देखा ।।
जिनका ध्यान बिरंची शम्भू, सनकादिक से ना संभलते देखा,
उनको ग्वाल सखा मंडल में, लेकर गेंद उछलते देखा ।।
जिनके चरण कमल कमला के, करतल से ना निकलते देखा,
उनको ब्रज की कुञ्ज गलिन में, कंटक पथ पर चलते देखा ।।
जिनकी वक्र भृकुटी के भय से, सागर सप्त उबलते देखा,
उनको ही यशोदा के भय से, अश्रु बिंदु दृग ढलते देखा ।।