(तर्ज : सौ साल पहले…..)
बेल पत्रों से शिव को बहुत दुलार है -२,
राम राम लिखके चढ़ावो, भव से बेड़ा पार है।। टेर।।
हरे हरे चढ़ावो तो, तेरे घर हरियाली आये,
चाँदी के चढ़ावो तो, भगत तेरी चाँदी हो जाये,
कुछ भी न हो तो मानस, पूजा स्वीकार है ।।
बेल के मूल में है ब्रह्मा, मध्य में विष्णु रहते है,
और अग्र भाग में शिवम्, यही तो शास्त्र भी कहते हैं,
तीन गुण वाला ये तो, त्रिगुणाकार है ।।
बेल के पत्ते भोले नाथ, को इतने सुहाते हैं,
गर नये ना मिले तो, चढ़े धोकर के चढ़ाते हैं,
पवन बिल्व वृक्ष शिव का, रूप साकार है ।।