वृंदावन में रहता है वो, उसका नाम कन्हैया है ।।
तर्ज – जाने वाले एक संदेशा ।
ना ही कोई सन्त है वो, ना ही कोई साधू है,
छोटा सा एख बालक है पर, उसके हाथ में जादू है,
छोटी सी अंगुली पर देखो गिरवर का धरैया है ।।
ऐसे-ऐसे काम किये भई, रख दिया हिलाकर के,
कैसे-कैसे किये करिश्में, बांसुरी बजाकर के,
छ: गज की साड़ी ना उतरी ऐसा चीर बड़इया है ।।
मुझसे पूछा कई भक्तों ने, दिखने में वो कैसा है,
मैंने कहा दिल देकर देखो, दीवानों के जैसा है,
दिल वालों पर ज्यान लुटाये, ऐसा दिल का लगैया है ।।
उसकी भोली सूरत ऐसी, सारा जमाना भूल गये,
चले गये ‘बनवारी’ लेकिन वापस आना भूल गये,
बंशी बजाकर अपणा बणाको ऐसा बंशी बजैया है ।।
लिरिक्स – जयशंकर चौधरी जी