तेरे से ना छिपे है, हालात ये हमारे,
हालात ये हमारे,
तेरे से ना छिपें हैं….
तर्ज – मौसम है आशिकाना।
मझदार में फॅसे है, टूटी सी नाँव लेकर,
ये भी टिकेगी कब तक, तू जाने हमसे बेहतर,
लगता समय में थोड़े, डूबेंगे हम बेचारे,
डूबेंगे हम बेचारे,
तेरे से ना छिपें हैं, हालात ये हमारे,
हालात ये हमारे….
कैसे कन्हैया पल पल, पूछो बिता रहे है,
अंदर से हम तो तिल-तिल, मरते ही जा रहे है,
किसका ले हम सहारा, यहाँ सब है बेसहारे,
यहाँ सब है बेसहारे,
तेरे से ना छिपें हैं, हालात ये हमारे,
हालात ये हमारे….
बाहें पसारी हमने, तुमको बुला रहे है,
तुम पर उम्मीदें बाबा, अपनी टिका रहे है,
आओ ‘कमल’ कन्हैया, हारे के बन सहारे,
हारे के बन सहारे,
तेरे से ना छिपें हैं, हालात ये हमारे,
हालात ये हमारे….
लेखक – राघव जी (कमल)
स्वर- संजय मित्तल जी