श्री श्याम महर करदो, अब तो दुखियारे पर,
कब तक निरखू राहें, ना और बहाने कर ।।
तर्ज – बचपन की मोहब्बत को दिल से ना जुदा करना ।
जब जब भी प्रभु तुमको,दीनो ने पुकारा था,
दौड़े आये थे तुम, संकट से उबारा था,
सुनकर के द्वार पर मै,आया झोली फैलाकर,
कब तक निरखू राहें ।।
अब सूख गये आंसू, आहे बस बाकी है,
दूरी ना सही जाए,अँखियाँ मेरी प्यासी है,
कैसे धीर धरे मनवा, रख्खू इसे बहलाकर,
कब तक निरखू राहें ।।
शायद तेरे आने तक, सांसे भी नहीं होगी,
होठों से बोल नहीं, और अंखियां बंद होगी,
दुखियों के पल पल की, कीमत भी समझा कर,
कब तक निरखू राहें ।।
पायी ना तेरी रहमत, दीदार न मिल पाया,
‘राजू’ तेरे चरणों के, काबिल ना बन पाया,
इस जीवन में ना सही, अगले का तो वादा कर,
कब तक निरखू राहें ।।
लिरिक्स – राजू चितलांगीया जी