दोहा – पीतरां न भूलां नहीं जो बाँधे या गांठ ।
वे घर जाकर देखल्यो भोत घनेरा ठाठ ॥
तर्ज : खाटू को श्याम रंगीलो रे
पीतरां की ज्योत सवाई जी पीतरां की,
ज्योति सवाई आंकी घणी सकलाई,
म्हें तो मिल कर महिमा गाई जी, पीतरां की ॥
कुल का देव ये कुल का रक्षक,
चरणां मांय झुकाल्यो मस्तक,
थे सदा करो सेवकाई जी, पीतरां की ॥
घर परिवार का मालिक समझों,
थारे सिर पर आं को करजो,
जो कुछ है सारी कमाई जी, पीतरां की ॥
हर मांवस न ज्योत थे लीज्यो,
सालू- साल पहरावनी दीज्यो,
और दिल से करो बड़ाई जी, पीतरां की |
“बिन्नू” सेवक मण्डल के सागै,
अरज करे है पीतरां के आगे,
म्हाने याद घनेरी आई जी पीतरां की ॥