नगरी हो खाटू सी, मन्दिर बस श्याम का हो,
मेरी झोपड़ी हो छोटी सी, जब जनम दुबारा हो ।। टेर ।।
तर्ज – नगरी हो अयोध्या सी ।
कुटिया का हर तिनका, मेरे श्याम का दिवाना हो,
देखो हो जायें सांवरे के हम, और सांवरा हमारा हो ।। नगरी ।।
इस जनम में सांवरे से, ऐसा नाता जुड़ जायें,
मेरा जन्मों जनम इसके चरणों में गुजारा हो ।। नगरी ।।
मेरी सेवा भक्ती की, इतनी सी कीमत हो,
कुटिया हो मेरी प्रभु, अधिकार तुम्हारा हो ।। नगरी ।।
सिलसिला ये ‘बनवारी’ हर जनम में चलता रहे,
बस इतना सा वादा हो, इतना ही इशारा हो ।। नगरी ।।