मन भा गई इक झलक सांवरे तेरी,
फिर क्यों रहे तूँ अलग क्यों है ये दूरी ।। टेर ।।
तर्ज़ – लो आ गई ।
नजदीकियों से स्वामी, रिश्ता अटूट बनता,
न होती दरार इसमें, ये तो सदा पनपता,
फिर छोड़ो ना सबब ये, अच्छा नहीं है देरी ।। १ ।।
आपस का प्रेम ठाकुर, क्या कोई जान लेगा,
गहरा है ये समन्दर, डूबना वो खोज लेगा,
भावों का खेल सारा प्रीति ना होती पूरी ।। २ ।।
इंतज़ार का मजा तो, करने ही वाला जाने,
बिरहा में सबर रक्खे, वो ही तुम्हें पहचाने,
हद तो सबर की होगी, कब आश होगी पूरी ।। ३ ।।