कान्हो, कैसो रूप बणायो रे,
बण मणिहारी राधाजी से मिलणे आयो रे,
मिलणे आयो रे सांवरो मिलणे आयो रे ।। टेर ।।
तर्ज – थारे झांझ नगाड़ा ।
घेर घुमेर घाघरे ऊपर, चूनड़ ओढ़ी लाल,
नैणां मांही काजल घाल्यो, होठां लाली लाल,
चुड़ला, सिरपे धर कर ल्यायो रे…. ।। १ ।।
गली गली में हेला मारे, मथुरा को सरदार,
प्रेम दिवानों बण बेचे जी, चुड़ला नन्दकुमार,
कान्हो, कैसो गजब यो ढ़ायो रे…. ।। २ ।।
सोणो सो इक छांट के चुड़लो, बोली राधा प्यारी,
घणे जतन सूं हाथा माहीं, पहरादे मणिहारी,
कान्हो, मन ही मन मुस्कायो रे…. ।। ३ ।।
पूछण लागी दाम बता जद, मुलक्या कृष्ण कन्हाई,
“हर्ष” तेरे सै दाम के लेस्यूं, झांकले आंख्यां माहीं,
जुल्मी, कैसो भेष बणायो रे…
त्रिलोकी को नाथ आज के स्वांग रचायो रे…. ।। ४ ।।