हर पल हर घड़ी मां लाज बचाती है।
कोई आये ना आये, ये दादी दौड़ी आती है ।।
तर्ज – आदमी मुसाफिर है।
झुंझूनू में बैठी दादी हमारी, चरणों में झुकती है दुनियां ये सारी ।
भगतों पे किरपा बरसाती है ।। १ ।।
दुनिया में जिसका कोई ना साथी, उसको ये दादी अपना बनाती।
चुनड़ मां उनपे लहराती है ।। २ ।।
दादी से जिसने जोड़ा है नाता, उनकी बनी है भाग्य विधाता ।
बिन बोले सब कुछ दे जाती है ।। ३ ।।