बतादो हे जगत जननी, मेरा उद्धार कैसे हो,
बह रहा हूँ अगमधारा, में बेड़ा पार कैसे हो ।। टेर ।।
तर्ज – सजा दो घर को ।
नहीं श्रद्धा नहीं भक्ति,
नहीं विद्या नहीं बुद्धि – २,
तेरे दासों में हे माता, मेरा शुमार कैसे हो ।। बतादो….
मैं जैसा हूँ तुम्हारा हूँ,
भरोसा आपका भारी – २,
तो फिर किससे करूँ फरियाद, मंजिल पार कैसे हो ।। बतादो….
बहुत भटका हूँ विषयों में,
कहीं भी शांति ना पायी – २,
फँसा मद मोह माया में, मेरा निस्तार कैसे हो ।। बतादो….
यही विनती है सेवक की,
जगत को प्रेममय देखूँ – २,
करुँ बलिदान स्वारथ का, ये पर उपकार कैसा हो ।। बतादो….