जीमों जी बाबाजी, मनवार मैं करूं,
चूरमें की थाली थारे, सामने धरूं ।।
तर्ज – बोलो जी दयालु ।
आंटे मांही देसी घी को, मूण दियो,
हाथां सु मसल आटो, गूंथ लियो,
उखल मांही कूट ल्यायो, जीमो तो सरु ।।
चूरमें में देसी बूरा, दीन्ही मैं मिला,
कतर कतर मेवा, मायने दिया,
भोग थे लगाओ, अरदास मैं करूँ ।।
छोटोड़ी इलायची का, दाणा घाल्या मांय,
मुठ्ठी भर केशर बुरकाई, चूरमें के मांय,
आरोगो महाराज थारे, चरणाँ में पडूं ।।
पड़दो लगायो बाबा, आओ तो सरी,
रुच रुच भोग थे, लगाओ तो सरी,
‘हर्ष’ दयालु थांसु, अरज करूँ ।।