मैं दो-दो माँ का बेटा हूँ, दोनों मैया बड़ी प्यारी है,
एक माता मेरी जननी है, एक जग की पालनहारी है ।।
तर्ज – में पल दो पल का शायर हु ।
मैं जननी को जब माँ कहता, वो सिर पर हाथ फिराती है,
त्रिशूल रुपणी मैया को, वो जगमाता बतलाती है,
मैं उसकी गोद में जाता हूँ, वो तेरी शरण में लाती है,
अब शरण में तेरी आया हूँ, तू क्यों ना गले लगाती है,
मैं दो-दो माँ का बेटा हूँ ।।
जननी ने मुझको जन्म दिया, तुम बन के यशोदा पाली हो,
मेरी जननी की भी जननी, तुम मैया शेरावाली हो,
वो लोरी मुझे सुनाती है, तुम सत्संग मुझसे कराती हो,
वो भोजन मुझे खिलाती है, तुम छप्पन भोग जिमाती हो,
मैं दो-दो माँ का बेटा हूँ ।।
मेरी जननी ओझल हुई, पर तुम तो समाने हो मेरे,
वो इसी भरोसे छोड़ गई, कि तुम तो साथ में हो मेरे,
अब दिल जो माँ को याद करे, वो सीधे तेरे दर जाए,
हे जग जननी तेरी छवि में ही, मेरी मैया मुझे नजर आए,
मैं दो-दो माँ का बेटा हूँ ।।
लिरिक्स – श्याम अग्रवाल जी