लगन तुमसे लगा बैठे,
जो होगा देखा जाएगा,
जो होगा देखा जायेगा,
तुम्हें अपना बना बैठे,
जो होगा देखा जाएगा ।।
मैं था भटका हुआ राही,
मुझे मंज़िल मिली तुमसे,
की अब दुःख को भुला बैठे,
जो होगा देखा जायेगा,
लगन तुमसे लगा बैठे,
जो होगा देखा जाएगा ।।
सरकार आ गए हैं मेरे गरीबखाने में,
आया है दिल को सुकूं उनके करीब आने में,
मुद्दत से प्यासी आंखियों को मिला आज वो सागर,
भटका था जिसको खातिर इस ज़माने में ।।
जो भी आया शरण तेरी,
भटकने ना दिया तुमने,
तुम्हे सब कुछ बना बैठे,
जो होगा देखा जायेगा,
लगन तुमसे लगा बैठे,
जो होगा देखा जाएगा ।।
लिरिक्स – गजेन्द्र प्रताप सिंह




