बाबा कालजे में हुक सी उठे, थे कद मेरी सुध लेवोगा,
मेरो हिवड़ो ना डाटे सूं डटे थे कद मेरी सुध लेवोगा ।। टेर ।।
तर्ज – कित्थे सोइ ।
मन को पपीहो बाबा घणो दुःख पावे,
खाटू नगरिया में उड़-उड़ जावे,
म्हारो सांवरो बिराजे है जठे ।। थे कद …. ।। १ ।।
टाबरां सूं दूर-दूर बैठ्या कैंया श्याम जी,
यादां मं रोवे देखो बाबा थारी टाबरी,
छोड़ थांने जाऊं में कठे ।। थे कद …. ।। २ ।।
चरणां में थारे बाबा ‘स्वाति’ न बिठालो,
‘हर्ष‘ दयालु थारे कालजे लगाल्यो,
थारे दर सूं ना निजरां हटे ।। थे कद …. ।। ३ ।।
लिरिक्स – विनोद अग्रवाल (हर्ष) जी