हाथ कभी देखे नहीं, फिर भी सर पे फिराता है,
पाँव कभी देखे नहीं, फिर भी दौड़ा आता है,
हर पल मेरे संग में रहता-२, ये एहसास कराता है,
साँवरिया आता है, साँवरिया आता है।। टेर।।
तर्ज – स्वरचित ।
ना जाने किस भेष में, सांवरिया मिल जाता है,
जो सोचा दिल में मैंने, काम वही हो जाता है,
गम के बादल जब भी छाये-२, ये छत्तरी बन जाता है ।। १ ।।
जहाँ भी जाता हूँ मुझको, मिलता एक इशारा है,
मेरे आगे बढ़ने में, खेल इसी का सारा है,
केवट बनकर जीवन नैया-२, मेरी पार लगाता है ।। २ ।।
किर्तन के चलते ही मुझको, सेवा मिली है श्याम की,
प्राणों से प्यारी लगती है, माटी खाटू धाम की,
‘श्याम’ कहे जो माथे लगाकर-२, अर्जी इसे लगाता है ।। ३ ।।
लिरिक्स – श्याम अग्रवाल जी