साँवरे के दर पे नहीं, यूँ ही जाइये,
भक्ति भाव मन में जरा भरके जाइये ।। टेर।।
तर्ज – बेकरार करके हमे यूँ न जाइये ।
छल कपट की ना वहां जगह कोई,
प्रेम और प्यार ही ले जाइये,
राग द्वेष तेरी मेरी छोड़के,
सबको ही गले लगाते जाइये,
साँवरे को अपना आप, तब बनाइये,
भक्ति और भाव मन में भरके जाइये ।। १ ।।
दंभ और गुरुर अपना छोड़के,
सर झुका के उनके पास जाइये,
अपने ठाठ बाट सारे भूलकर,
साँवरे की सेवा में लग जाइये,
निरविकार होके आप मुस्कुराइये,
भक्ति और भाव मन में भरके जाइये ।। २ ।।
हारे के हैं साथी मेरे साँवरे,
अपनी जीत पे गुमां ना कीजिये,
कह रहा ‘रवि’ ये बात तौल कर,
हो सके तो आज ध्यान दीजिये,
श्याम की धुन में मगन, भजन सुनाईये,
भक्ति और भाव मन में भरके जाइये ।। ३ ।।