(तर्ज – ढोला ढ़ोल मजीरा बाजे….)
भाया जीवन सफल बना ले रे,
श्याम नाम अमृत रस पीकर, मौज मनाले रे..
दुनिया का सारा रस फीका, श्याम नाम के आगे,
पेल्योड़ा कर्मों के कारण, प्रीत श्याम सूं लागे,
मनड़ो कईयां डगमग हाले रे,
श्याम नाम अमृत रस पीकर, मौज मनाले रे..
लख चौरासी तूं घूम्यायो, श्याम नाम के सहारे,
ऊपरली सीड़ी पर आकर, मतना नाम बिसारे,
अब तूं चरणां चित्त लगाले रे,
श्याम नाम अमृत रस पीकर, मौज मनाले रे..
श्याम नाम न भूल्यो कोनी, और जूण मं जाकर,
पड्यो अकल पर पड़दो तेरे, मिनखा जूणी पाकर,
पड़दो दुई को हटाले रे,
श्याम नाम अमृत रस पीकर, मौज मनाले रे..
बीत गया दिन थोड़ा रहग्या, पल पल बीत्या जाय,
कुण जाणे कद जाणो पड्ज्या, फिर पाछे पछताय,
ई जीवन को लाभ उठाले रे,
श्याम नाम अमृत रस पीकर, मौज मनाले रे..
सतगुरु ‘काशीराम’ बावरा, साँची राह बतायी,
श्याम सनेही साँचो प्रीतम, बी ने मत बिसरायी,
नैया भव सूँ पार लगाले रे,
श्याम नाम अमृत रस पीकर, मौज मनाले रे..